भारत की पवित्र भूमि अलैकिक संतों की जन्मस्थली एवं कर्मस्थली रही है। अनोखे प्रतिभाशाली महात्मा गाॅधी ऐसे ही कर्मयोगी थे। जिन्होंने राष्ट्रहित के लिए दधिचि की भाॅति अपनी अस्थियों तक का समर्पण कर दिया। अपनी त्याग, सेवा, कर्तव्यनिष्ठा एवं सत्यनिष्ठा के कारण साधारण आत्मा से महात्मा बनने वाले महात्मा गांधी ने भारत के निर्माण में वही भूमिका निभाई, जो भूमिका तुर्की के निर्माण में मुस्तफा कमाल पाशा तथा रूस के निर्माण में लेनिन ने निभाई थी। 2 अक्टूबर 1869 को करमचंद गांधी के आंगन में जन्मे तथा पुतली बाई के स्नेह सुसंस्कारों में पले प्रतिभावान तथा त्यागशील गांधी जी अफ्रीकी यात्रा के दौरान मिले अपमान, भावनाओं और भारतीयों के प्रति भेदभाव को देखकर अन्याय से जूझने को आतुर हो उठे। उन्होंने देश सेवा के लिए स्वयं को उत्सर्ग कर दिया तथा सत्य एवं अहिंसा के शस्त्र से अंग्रेजों का मुकाबला किया। अंग्रेजों ने उन्हें कई यातनाएं दीं तथा उन्हें नंगा फकीर कहकर उनकी खिल्ली उड़ाई। लेकिन देशोद्धार का बीड़ा उठाए गांधीजी अपने सत्य और अहिंसा के पथ से विचलित नहीं हुए। उन्हें इस पवित्र कार्य में करोड़ों लोगों का सहयोग भी मिला।
‘चल पड़े जिधर दो डग-मग में,
चल पड़े कोटि पग उसी ओर
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि,
गड़ गए कोटि दृगं उसी ओर।’
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